सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम कथा


सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम कथा


प्रस्तावना:

भारतीय संस्कृति और इतिहास में कई प्रेम कथाएँ अमर हैं, लेकिन सावित्री और सत्यवान की कथा एक ऐसी अद्वितीय कहानी है, जो नारी शक्ति, अटूट प्रेम, और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बन गई है। यह कथा महाभारत के "वन पर्व" में वर्णित है और आज भी भारतीय समाज में "वट सावित्री व्रत" के रूप में जीवंत है, जहाँ विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं।


कहानी की पृष्ठभूमि:

बहुप्रतापी राजा अश्वपत की पुत्री थी सावित्री। वह अत्यंत रूपवती, बुद्धिमती और धर्मपरायण थी। जब विवाह योग्य हुई, तो पिता ने उससे वर चुनने को कहा। सावित्री ने तपोवन में वास कर रहे एक तपस्वी, राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को वर के रूप में चुना।

द्युमत्सेन एक अंधे राजा थे, जो अपना राज्य खो चुके थे और वन में रहने को विवश थे। सत्यवान भी अपने पिता के साथ वन में ही रहकर सेवा करते थे। नारद मुनि ने सावित्री को बताया कि सत्यवान अत्यंत योग्य तो हैं, लेकिन उनका जीवन अब केवल एक वर्ष शेष है। फिर भी सावित्री ने निश्चय किया कि वह सत्यवान से ही विवाह करेगी। उसके प्रेम और निष्ठा के आगे सभी झुक गए।


सत्यवान से विवाह और वनवास:

सावित्री ने सत्यवान से विवाह कर लिया और अपने सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी। वह हर दिन सत्यवान की सेवा करती, उनके माता-पिता की देखभाल करती और सच्चे अर्थों में एक आदर्श पत्नी बनकर रही। उसे ज्ञात था कि एक वर्ष के बाद सत्यवान की मृत्यु निश्चित है, फिर भी उसने अपने प्रेम में कोई कमी नहीं आने दी।


मृत्यु का दिन और यमराज से संघर्ष:

जिस दिन सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी, सावित्री ने उपवास किया, पूजा की, और सत्यवान के साथ वन में गई। सत्यवान लकड़ियाँ काटते समय अचानक बेहोश होकर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। तभी यमराज, मृत्यु के देवता, उसकी आत्मा को ले जाने आए।

सावित्री भी यमराज के पीछे चल पड़ी। यमराज ने उसे मना किया, लेकिन सावित्री के तर्क, भक्ति, और धर्म के प्रति उसकी निष्ठा ने उन्हें प्रभावित किया। उन्होंने सावित्री को तीन वरदान माँगने को कहा –

  1. उसके ससुर को नेत्र और राज्य वापसी,

  2. उसके पिता को सन्तान सुख,

  3. और तीसरा – उसे सौ पुत्रों का वरदान

यमराज ने सभी वरदान दे दिए, लेकिन तीसरे वरदान को पूरा करने के लिए सत्यवान का जीवित रहना आवश्यक था। यमराज को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।


कथा का संदेश:

यह कथा केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, यह नारी शक्ति, अडिग निष्ठा, और धर्म के प्रति समर्पण की मिसाल है। सावित्री ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रेम में शक्ति है, जो मृत्यु को भी परास्त कर सकती है।


वट सावित्री व्रत:

इस कथा की स्मृति में भारत में विवाहित महिलाएँ वट सावित्री व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएँ वट वृक्ष (बड़ का पेड़) की पूजा करती हैं, व्रत रखती हैं और सावित्री जैसी पतिव्रता बनने की कामना करती हैं।


निष्कर्ष:

सावित्री और सत्यवान की कथा कालजयी है – यह आज भी भारतीय समाज को प्रेरणा देती है कि प्रेम केवल भावना नहीं, बल्कि शक्ति है। सावित्री के दृढ़ संकल्प और बुद्धिमानी ने उसे संसार की सबसे महान पतिव्रता नारियों में स्थान दिलाया। यह कथा हर युग में प्रासंगिक है, क्योंकि यह बताती है कि सच्चा प्रेम, जब साहस और विश्वास से जुड़ता है, तो असंभव को भी संभव बना सकता है।

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